ऋग्वेदः 1.12.2
अग्निमग्निं हवीमभिः सदा हवन्त विश्पतिम्। हव्यवाहं पुरुप्रियम्॥2॥
पदपाठ — देवनागरी
अ॒ग्निम्ऽअ॑ग्निम्। हवी॑मऽभिः। सदा॑। ह॒व॒न्त॒। वि॒श्पति॑म्। ह॒व्य॒ऽवाह॑म्। पु॒रु॒ऽप्रि॒यम्॥ 1.12.2
PADAPAATH — ROMAN
agnim-agnim | havīma-bhiḥ | sadā | havanta | viśpatim | havya-vāham |
puru-priyam
देवता — अग्निः ; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जैसे हम लोग (हवीमभिः) ग्रहण करने योग्य उपासनादिकों तथा शिल्पविद्या के साधनों से (पुरुप्रियम्) बहुत सुख करानेवाले (विश्पतिम्) प्रजाओं के पालन हेतु और (हव्यवाहम्) देने लेने योग्य पदार्थों को देने और इधर-उधर पहुँचानेवाले (अग्निम्) परमेश्वर प्रसिद्ध अग्नि और बिजली को (वृणीमहे) स्वीकार करते हैं,वैसे ही तुम लोग भी सदा (हवन्त) उसका ग्रहण करो॥2॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में लुप्तोपमालंकार है। और पिछले मन्त्र से ‘वृणीमहे’ इस पद की अनुवृत्ति आती है। ईश्वर सब मनुष्यों के लिये उपदेश करता है कि– हे मनुष्यों !तुम लोगों को विद्युत् अर्थात् बिजलीरूप तथा प्रत्यक्ष भौतिक अग्नि से कला-कौशल आदि सिद्ध करके इष्ट सुख सदैव भोगने और भुगवाने चाहियें॥2॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
2. प्रजा-रक्षक, हव्यवाहक और बहुलोकप्रिय अग्नि को यज्ञकर्ता आवाहक मंत्रों-द्वारा निरन्तर आह्वान करते हैं।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
2. With callings ever they invoke Agni, Agni, Lord of the House, Oblation-bearer, much beloved.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
With callings ever they invoke Agni, Agni, Lord of the House,
Oblation-bearer, much beloved. [2]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
2. (The offerers of oblations) invoke with their invocations, Agni, Agni, the lord of men, the bearer of offerings, the beloved of many. The Lord of Men- Vispati; Vis being constantly used for prajah, progeny, people men.2