ऋग्वेदः 1.12.11
स नः स्तवान आ भर गायत्रेण नवीयसा। रयिं वीरवतीमिषम्॥11॥
पदपाठ — देवनागरी
सः। नः॒। स्तवा॑नः। आ। भ॒र॒। गाय॒त्रेण॑। नवी॑यसा। र॒यिम्। वी॒रऽव॑तीम्। इष॑म्॥ 1.12.11
PADAPAATH — ROMAN
saḥ | naḥ | stavānaḥ | ā | bhara | gāyatreṇa | navīyasā | rayim |
vīra-vatīm | iṣam
देवता — अग्निः ; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे भगवन् (सः) जगदीश्वर ! आप (नवीयसा) अच्छी प्रकार मन्त्रों के नवीन पाठ गानयुक्त (गायत्रेण) गायत्री छन्दवाले प्रगाथों से (स्तवानः) स्तुति को प्राप्त किये हुये (नः) हमारे लिये (रयिम्) विद्या और चक्रवर्त्ति राज्य से उत्पन्न होनेवाले धन तथा जिसमें (वीरवतीम्) अच्छे-2 वीर तथा विद्वान् हों, उस (इषम्) सज्जनों के इच्छा करने योग्य उत्तम क्रिया का (आभर) अच्छी प्रकार धारण कीजिये।1।
(सः) उक्त भौतिक अग्नि (नवीयसा) अच्छी प्रकार मन्त्रों के नवीन-2 पाठ तथा गानयुक्त स्तुति और (गायत्रेण) गायत्री छन्दवाले प्रगाथों से (स्तवानः) गुणों के साथ ग्रहण किया हुआ (रयिम्) उक्त प्रकार का धन (च) और (वीरवतीम् इषम्) उक्त गुणवाली उत्तम क्रिया को (आभर) अच्छी प्रकार धारण करता है।2।॥11॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में श्लेषालंकार है। तथा पहिले मन्त्र से ‘चकार’ की अनुवृत्ति की है। हर एक मनुष्य को वेद आदि के नवीन-2 अध्ययन से वेद की उच्चारण-क्रिया प्राप्त होती है, इस कारण ‘नवीयसा’ इस पद का उच्चारण किया है। जिन धर्मात्मा मनुष्यों ने यथावत् शब्दार्थपूर्वक वेद के पढ़ने और वेदोक्त कर्मों के अनुष्ठान से जगदीश्वर को प्रसन्न किया है, उन मनुष्यों को वह उत्तम-2 विद्या आदि धन तथा शूरता आदि गुणों को उत्पन्न करनेवाली श्रेष्ठ कामना को देता है,क्योंकि जो वेद के पढ़ने और परमेश्वर के सेवन से युक्त मनुष्य हैं, वे अनेक सुखों का प्रकाश करते हैं॥11॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
11. अग्निदेव! नये गायत्री-छन्दों से स्तुत होकर हमारे लिए धन और वीर्यशाली अन्न प्रदान करो।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
11. So lauded by our newest song of praise bring opulence to us, And food,
with heroes for our sons.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
So lauded by our newest song of praise bring opulence to us, And food, with
heroes for our sons. [11]
Horace Hayman Wilson (On the
basis of Sayana)
11. Praised with our newest hymn, bestow upon us richer and food, the
source of progeny.