ऋग्वेदः 1.11.8

इन्द्रमीशानमोजसाभि स्तोमा अनूषत। सहस्रं यस्य रातय उत वा सन्ति भूयसीः॥8॥

पदपाठ — देवनागरी
इन्द्र॑म्। ईशा॑नम्। ओज॑सा। अ॒भि। स्तोमाः॑। अ॒नू॒ष॒त॒। स॒हस्र॑म्। यस्य॑। रा॒तयः॑। उ॒त। वा॒। सन्ति॑। भूय॑सीः॥ 1.11.8

PADAPAATH — ROMAN
indram | īśānam | ojasā | abhi | stomāḥ | anūṣata | sahasram | yasya | rātayaḥ | uta | vā | santi | bhūyasīḥ

देवता        इन्द्र:;       छन्द        निचृदनुष्टुप्;       स्वर        गान्धारः ;      
ऋषि —        जेता माधुच्छ्न्दसः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(यस्य) जिस जगदीश्वर के ये सब (स्तोमाः) स्तुतियों के समूह (सहस्रम्) हजारों (उतवा) अथवा (भूयसीः) अधिक (रातयः) दान (सन्ति) हैं, उस (ओजसा) अनन्त बल के साथ वर्त्तमान (ईशानम्) कारण से सब जगत् को रचनेवाले तथा (इन्द्रम्) सकल ऐश्वर्य्ययुक्त जगदीश्वर के (अभ्यनूषत) सब प्रकार से गुणकीर्त्तन करते हैं॥8॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जिस दयालु ईश्वर ने प्राणियों के सुख के लिये जगत् में अनेक उत्तम-2 पदार्थ अपने पराक्रम से उत्पन्न करके जीवों को दिये हैं, उसी ब्रह्म के स्तुतिविधायक सब धन्यवाद होते हैं, इसलिये सब मनुष्यों को उसी का आश्रय लेना चाहिये॥8॥
इस सूक्त में इन्द्र शब्द से ईश्वर की स्तुति, निर्भयता-सम्पादन, सूर्य्यलोक के कार्य्य,शूरवीर के गुणों का वर्णन, दुष्ट शत्रुओं का निवारण, प्रजा की रक्षा, तथा ईश्वर के अनन्त सामर्थ्य से कारण करके जगत् की उत्पत्ति आदि के विधान से इस ग्यारहवें सूक्त की संगति दशवें सूक्त के अर्थ के साथ जाननी चाहिये॥
यह भी सूक्त सायणाचार्य्य आदि आर्य्यावर्त्तवासी तथा यूरोपदेशवासी विलसन साहब आदि ने विपरीत अर्थ के साथ वर्णन किया है।
                              यह प्रथम मण्डल में तीसरा अनुवाक, ग्यारहवां सूक्त और इक्कीसवां वर्ग पूरा हुआ॥3॥11॥21॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
8. अपने बल के प्रभाव से जगत के नियन्ता इन्द्र को प्रार्थियों ने स्तुत किया था। इन्द्र का धन-दान हजारों या हजारों से भी अधिक तरीकों से होता है।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
8. Our songs of praise have glorified Indra who ruleth by his might, Whose precious gifts in thousands come, yea, even more abundantly. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Our songs of praise have glorified Indra who rules by his might, Whose precious gifts in thousands come, yea, even more abundantly.

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
8. The reciters of sacred hymns praise with all their might, Indra, the ruler of the world, whose bounties are (computed) by thousands or even more.

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