ऋग्वेदः 1.11.1

इन्द्रं विश्वा अवीवृधन्त्समुद्रव्यचसं गिरः। रथीतमं रथीनां वाजानां सत्पतिं पतिम्॥1॥

पदपाठ — देवनागरी
इन्द्र॑म्। विश्वाः॑। अ॒वी॒वृ॒ध॒न्। स॒मु॒द्रऽव्य॑चसम्। गिरः॑। र॒थिऽत॑मम्। र॒थीना॑म्। वाजा॑नाम्। सत्ऽप॑तिम्। पति॑म्॥ 1.11.1

PADAPAATH — ROMAN
indram | viśvāḥ | avīvṛdhan | samudra-vyacasam | giraḥ | rathi-tamam | rathīnām | vājānām | sat-patim | patim

देवता       इन्द्र:;       छन्द       निचृदनुष्टुप्;       स्वर        गान्धारः ;      
ऋषि        जेता माधुच्छ्न्दसः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हमारी ये (विश्वा) सब (गिरः) स्तुतियाँ (समुद्रव्यचसम्) जो आकाश में अपनी व्यापकता से परिपूर्ण ईश्वर, वा जो नौका आदि पूरण सामग्री से शत्रुओं को जीतनेवाले मनुष्य (रथीनाम्) जो बडे-2 युद्धों में विजय कराने वा करनेवाले (रथीतमम्) जिसमें पृथिवी आदि रथ अर्थात् सब क्रीड़ाओं के साधन, तथा जिसके युद्ध के साधन बडे-2 रथ हैं, (वाजानाम्) अच्छी प्रकार जिनमें जय और पराजय प्राप्त होते हैं, उनके बीच (सत्पतिम्) जो विनाशरहित प्रकृति आदि द्रव्यों का पालन करनेवाला ईश्वर, वा सत्पुरुषों की रक्षा करनेहारा मनुष्य (पतिम्) जो चराचर जगत् और प्रजा के स्वामी, वा सज्जनों की रक्षा करनेवाले और (इन्द्रम्) विजय के देनेवाले परमेश्वर के, वा शत्रुओं को जीतनेवाले धर्मात्मा मनुष्य के (अवीवृधन्) गुणानुवादों को नित्य बढ़ाती रहें॥1॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में श्लेषालंकार है। सब वेदवाणी परमैश्वर्य्ययुक्त सबमें रहने सब जगह रमण करने सत्य स्वभाव तथा धर्मात्मा सज्जनों को विजय देनेवाले परमेश्वर और धर्म वा बल से दुष्ट मनुष्यो को जीतने तथा धर्मात्मा वा सज्जन पुरुषों की रक्षा करनेवाले मनुष्य का प्रकाश करती है। इस प्रकार परमेश्वर वेदवाणी से सब मनुष्यों को आज्ञा देता है॥1॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
1. सागर की तरह व्यापक, रथि-श्रेष्ठ, अन्नपति और साधु-रक्षक इन्द्र को हमारी सारी स्तुतियाँ परिवर्द्धित कर चुकी हैं।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
1. ALL sacred songs have magnified Indra expansive as the sea, The best of warriors borne on cars, the Lord, the very Lord of strength. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
ALL SACRED songs have magnified Indra expansive as the sea, The best of warriors borne on cars, the Lord, the very Lord of strength. [1]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
1. All our praises magnify Indra, expansive as the ocean, the most valiant of warriors who fight in chariots, the lord of food, the protector of the virtuous.
Expansive as the Ocean- Samudra vyacasam, explained samudra vad vytiptavantam, spreading or pervading like the ocean; a vague mode of indicating the universal diffusion of Indra as the firmament.

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