ऋग्वेदः 1.1.3
अग्निन रयिर्मश्नवुत्पोर्षमेव दिवेदिवे। यशसं वीरवत्तमम्॥3॥
पदपाठ — देवनागरी
अ॒ग्निना॑
। र॒यिम् । अ॒श्न॒व॒त् । पोष॑म् । ए॒व । दि॒वेऽदि॑वे । य॒शस॑म् । वी॒रव॑त्ऽतमम् ॥
१.१.३
PADAPAATH — ROMAN
agninā | rayim | aśnavat | poṣam | eva | dive–dive | yaśasam |
vīravat-tamam
देवता -—; अग्निः ; छन्द —; गायत्री; स्वर — ; षड्जः; ऋषि — ; मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
मन्त्रार्थ — महर्षि
दयानन्द सरस्वती
यह
मनुष्य (अग्निना) (एव) अच्छी प्रकार ईश्वर की उपासना और भौतिक अग्नि ही को कलाओं
में संयुक्त करने से (दिवे दिवे) प्रतिदिन (पोषम्) आत्मा और शरीर की पुष्टि
करनेवाला (यशसम्) जो उत्तम कीर्ति का बढानेवाला और (वीरवत्तमम्) जिसको अच्छे-अच्छे
विद्वान् वा शूरवीर लोग चाहा करते हैं। (रयिम्) विद्या और सुवर्णादि उत्तम उस धन
को सुगमता से (अश्नवत्) प्राप्त होता है ॥३॥
भावार्थ — महर्षि
दयानन्द सरस्वती
इस
मंत्र में श्लेषालंकार से दो अर्थों का ग्रहण है। ईश्वर की आज्ञा में रहने तथा
शिल्पविद्यासम्बन्धि कार्य्यों की सिद्धि के लिए भौतिक अग्नि को सिद्ध करनेवाले
मनुष्यों को अक्षय अर्थात् जिसका कभी नाश नहीं होता, सो धन प्राप्त होता है। तथा मनुष्य लोग
जिस धन से कीर्ति की वृद्धि और जिस धन को पाके वीर पुरुषों से युक्त होकर नाना
सुखों से युक्त होते हैं। सबको उचित है कि इस धन को अवश्य प्राप्त करें ॥३॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
३.
अग्नि के अनुग्रह से यजमान को धन मिलता है और वह धन अनुदिन बढ़ता और कीर्तिकर होता
है तथा उससे अनेक वीर पुरुषों की नियुक्ति की जाती हैं।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
3 Through Agni man obtaineth wealth, yea, plenty waxing day by day, Most
rich in heroes, glorious.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
Through Agni man gets wealth, yea, plenty waxing day by day, Most rich in
heroes, glorious. [3]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
3. Through Agni the worshipper obtains that affluence which increases day by day, which is the source of fame and the multiplier of mankind.