ऋग्वेद 1.27.5

आ नो भज परमेष्वा वाजेषु मध्यमेषु। शिक्षा वस्वो अन्तमस्य॥5॥

पदपाठ — देवनागरी
आ। नः॑। भ॒ज॒। प॒र॒मेषु॑। आ। वाजे॑षु। म॒ध्य॒मेषु॑। शिक्षा॑। वस्वः॑। अन्त॑मस्य॥ 1.27.5

PADAPAATH — ROMAN
ā | naḥ | bhaja | parameṣu | ā | vājeṣu | madhyameṣu | śikṣā | vasvaḥ | antamasya

देवता —        अग्निः ;       छन्द        गायत्री;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि         शुनःशेप आजीगर्तिः 

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे विद्वान् मनुष्य ! (परमेषु) उत्तम (मध्यमेषु) मध्यम आनन्द के देनेवाले वा (वाजेषु) सुख प्राप्तिमय युद्धों वा उत्तम अन्नादि में (अन्तमस्य) जिस प्रत्यक्ष सुख मिलनेवाले संग्राम के बीच में (नः) हम लोगों को (आशिक्ष) सब विद्याओं की शिक्षा कीजिये इसी प्रकार हम लोगों के (वस्वः) धन आदि उत्तम-उत्तम पदार्थों का(आभज) अच्छे प्रकार स्वीकार कीजिये॥5॥ 

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस प्रकार जिन धार्मिक पुरुषार्थी पुरुषों से सेवन किया हुआ विद्वान् सब विद्याओं को प्राप्त कराके उनको सुख युक्त करें तथा इस जगत् में उत्तम मध्यम और निकृष्ट भेद से तीन प्रकार के भोग लोक और मनुष्य है इनको यथा बुद्धिविद्या देता रहे॥5॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
5. परम (दिव्य लोक का), मध्यम ( अन्तरिक्ष का) और अन्तिकस्थ (पृथिवी का) धन प्रदान करो।

R T H Griffith
5. Give us a share of strength most high, a share of strength that is below, A share of strength that is between. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Give us a share of strength most high, a share of strength that is below, A share of strength that is between. [5]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
5. Procure for us the food that is in heaven and mid-air, and grant us the wealth that is on earth.
In the supreme, in the middle, and of the end, are the vague expressions of the text; their local appropriation is derived from the commentary.

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