ऋग्वेद 1.25.3

वि मृळीकाय ते मनो रथीरश्वं न संदितम्। गीर्भिर्वरुण सीमहि॥3॥

पदपाठ — देवनागरी
वि। मृ॒ळी॒काय॑। ते॒। मनः॑। र॒थीः। अश्व॑म्। न। सम्ऽदि॑तम्। गी॒भिः। व॒रु॒ण॒। सी॒म॒हि॒॥ 1.25.3

PADAPAATH — ROMAN
vi | mṛḷīkāya | te | manaḥ | rathīḥ | aśvam | na | sam-ditam | gīrbhiḥ | varuṇa | sīmahi

देवता —        वरुणः;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         शुनःशेप आजीगर्तिः 

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती हे (वरुण) जगदीश्वर! हमलोग (रथीः) रथवाले के (संदितम्) रथ में जोडे हुए(अश्वम्) घोड़े के (न) समान (मृळीकाय) उत्तम सुख के लिये (ते) आपकेसम्बन्ध में (मनः) ज्ञान (विषीमहि) बांधते हैं॥3॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में उपमालंकार है। हे भगवन् जगदीश्वर! जैसे रथके स्वामी का भृत्यघोड़े को चारों ओर से बांधता है वैसे ही हम लोग आपका जो वेदोक्त ज्ञान हैउसको अपनी बुद्धि के अनुसार मन में दृढ़ करते हैं॥3॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
3. वरुणदेव, जिस प्रकार रथ का स्वामी अपने थके हुए घोड़े को शान्त करता है, उसी प्रकार सुख के लिए स्तुति-द्वारा हम तुम्हारे मन को प्रसन्न करते हैं।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
3. To gain thy mercy, Varuna, with  HYMNs we bind thy heart, as binds The charioteer his tethered horse. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
To gain your mercy, Varuna, with hymns we bind your heart, as binds The charioteer his tethered horse. [3]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
3. We soothe your mind, Varuna, by our praises, for our good, as a charioteer his weary steed.

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