ऋग्वेद 1.25.14
न यं दिप्सन्ति दिप्सवो न द्रुह्वाणो जनानाम्। न देवमभिमातयः॥14॥
पदपाठ — देवनागरी
न। यम्। दिप्स॑न्ति। दि॒प्सवः। न। द्रुह्वा॑णः। जना॑नाम्। न। दे॒वम्। अ॒भिऽमा॑तयः॥ 1.25.14
PADAPAATH — ROMAN
na | yam | dipsanti | dipsavaḥ | na | druhvāṇaḥ | janānām | na | devam |
abhi-mātayaḥ
देवता — वरुणः; छन्द — निचृद्गायत्री ; स्वर — षड्जः;
ऋषि — शुनःशेप आजीगर्तिः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती हे मनुष्यो! तुम सब लोग (जनानाम्) विद्वान् धार्मिक वा मनुष्य आदि प्राणियों से(दिप्सवः) झूठे अभिमान और झूठे व्यवहार को चाहनेवाले शत्रुजन (यम्) जिस (देवम्)दिव्य गुणवाले परमेश्वर वा विद्वान् को (न) (दिप्सन्ति) विरोध से न चाहें (द्रुह्वाणः) द्रोहकरनेवाले जिसको द्रोह से (न) न चाहें। तथा जिसके साथ (अभिमातयः) अभिमानी पुरुष(न) अभिमान से न वर्त्तें उन उपासना करने योग्य परमेश्वर वा विद्वानों को जानो॥14॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में श्लेषालंकार है। जो हिंसक परद्रोही अभिमानयुक्त जन हैं वे अज्ञानपन सेपरमेश्वर वा विद्वानों के गुणों को जानकर उनसे उपकार लेने को समर्थ नहीं हो सकतेइसलिये सब मनुष्यों को योग्य है कि उनके गुण कर्म स्वभाव का सदैव ग्रहण करें॥14॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
14. जिस वरुणदेव से शत्रु लोग शत्रुता नहीं कर सकते, मनुष्यपीड़क जिसे पीड़ा नहीं दे सकते और पापी लोग जिस देव के प्रति पापाचरण नहीं कर सकते।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
14. The God whom enemies threaten not, nor those who tyrannize o’er men,
Nor those whose minds are bent on wrong.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
The god whom enemies threaten not, nor those who tyrannize over men, Nor
those whose minds are bent on wrong. [14]
H H Wilson (On the basis of
Sayana)
14. A divine (being), whom enemies dare not to offend; nor the oppressors
of mankind, nor the iniquitous, (venture to displease).