ऋग्वेद 1.24.6
नहि ते क्षत्रं न सहो न मन्युं वयश्चनामी पतयन्त आपुः। नेमा आपो अनिमिषं चरन्तीर्न ये वातस्य प्रमिनन्त्यभ्वम्॥6॥
पदपाठ — देवनागरी
न॒हि। ते॒। क्ष॒त्रम्। न। सहः॑। न। म॒न्युम्। वयः॑। च॒न। अ॒मी इति॑। प॒तय॑न्तः। आ॒पुः। न। इ॒माः। आपः॑। अ॒नि॒ऽमि॒षम्। चर॑न्तीः। न। ये। वात॑स्य। प्र॒ऽमि॒नन्ति॑। अभ्व॑म्॥ 1.24.6
PADAPAATH — ROMAN
nahi | te | kṣatram | na | sahaḥ | na | manyum | vayaḥ | cana | amī iti |
patayantaḥ | āpuḥ | na | imāḥ | āpaḥ | ani-miṣam | carantīḥ | na | ye | vātasya
| pra-minanti | abhvam
देवता — वरुणः ; छन्द — निचृत्त्रिष्टुप् ;
स्वर — धैवतः; ऋषि — शुनःशेप आजीगर्तिः स कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे जगदीश्वर ! (क्षत्रम्) अखण्ड राज्य को (पतयन्तः) इधर-उधर चलायमान होते हुए(अमी) ये लोक लोकान्तर (न) नहीं (आपुः) व्याप्त होते हैं और न (वयः) पक्षी भी(न) नहीं (सहः) बल को (न) नहीं (मन्युम्) जो कि दुष्टों पर क्रोध है उसको भी(न) नहीं व्याप्त होते हैं (न) नहीं ये (अनिमिषम्) निरन्तर (चरन्तीः) बहने वाले(आपः) जल वा प्राण आपके सामर्थ्य को (प्रमिनन्ति) परिणाम कर सकते और (ये)जो (वातस्य) वायु के वेग हैं वे भी आपकी सत्ता का परिमाण (न) नहीं कर सकते इसी प्रकार और भी सब पदार्थ आपकी (अभ्वम्) सत्ता का निषेध भी नहीं कर सकते॥6॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
ईश्वर के अनन्त सामर्थ्य होने से उसका परिमाण वा उसकी बराबरी कोई भी नहीं कर सकता है। ये सब लोक चलते हैं परन्तु लोकों के चलने से उनमें व्याप्त ईश्वर नहीं चलता क्योंकि जो सब जगह पूरण है वह कभी चलेगा। इस ईश्वर की उपासना को छोड़ कर किसी जीव का पूर्ण अखण्डित राज्य वा सुख कभी नहीं हो सकता इससे सब मनुष्यों को प्रमेय वा विनाश रहित परमेश्वर की सदा उपासना करनी योग्य है॥6॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
6. वरुणदेव! ये उड़नेवाली चिड़ियाँ तुम्हारे समान बल और पराक्रम नहीं प्राप्त कर सकीं। तुम्हारे सदृश इन्होंने क्रोध भी नहीं प्राप्त किया। निरन्तर विहरण-शील जल और वायु की गति भी तुम्हारे वेग को नहीं लाँघ सकी।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
6. Ne’er have those birds that fly through air attained to thy high
dominion or thy might or spirit; Nor these the waters that flow on for ever,
nor hills, abaters of the wind’s wild fury.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Never have those birds that fly through air attained to your high dominion or your might or spirit; Nor these the waters that flow on forever, nor hills, abaters of the wind’s wild fury. [6]
H H Wilson (On the basis of Sayana)
6. These birds, that are flying (through the air), have not obtained, Varuna, your bodily strength or your prowess, or (are able to endure your) wrath; neither do these waters that flow increasingly, nor (do the gales) of wind, surpass your speed.
Savita2 refers SunahSepas, it is said, to Varuna. It is not very obvious why any comparison should be instituted between the strength and prowess of Varuna and of birds.