ऋग्वेद 1.24.5

भगभक्तस्य ते वयमुदशेम तवावसा। मूर्धानं राय आरभे॥5॥

पदपाठ — देवनागरी
भग॑ऽभक्तस्य। ते॒। व॒यम्। उत्। अ॒शे॒म॒। तव॑। अव॑सा। मू॒र्धान॑म्। रा॒यः। आ॒ऽरभे॑॥ 1.24.5

PADAPAATH — ROMAN
bhaga-bhaktasya | te | vayam | ut | aśema | tava | avasā | mūrdhānam | rāyaḥ | ārabhe

देवता —        सविता भगो वा ;       छन्द        गायत्री;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि         शुनःशेप आजीगर्तिः  स कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे जगदीश्वर ! जिससे हम लोग (भगभक्तस्य) जो सबके सेवने योग्य पदार्थों का यथायोग्य विभाग करनेवाले (ते) आपकी कीर्त्ति को (उदशेम) अत्यन्त उन्नति के साथ व्याप्त हों कि उससे (तव) आपकी (अवसा) रक्षणादि कृपादृष्टि से (रायः) अत्यन्त धन के (मूर्द्धानम्) उत्तम से उत्तम भाग को प्राप्त होकर (आरभे) आरम्भ करने योग्य व्यवहारों में नित्य प्रवृत्त हों अर्थात् उसकी प्राप्ति के लिये नित्य प्रयत्न कर सकें॥5॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो मनुष्य अपने क्रिया कर्म से ईश्वर की आज्ञा में प्राप्त होते हैं वे ही उससे रक्षा को सब प्रकार से प्राप्त और सब मनुष्यों में उत्तम ऐश्वर्यवाले होकर प्रशंसा को प्राप्त होते हैं क्योंकि वही ईश्वर जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय व्यवस्था से विभाग कर फल देता है इससे॥5॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
5. सूर्यदेव! तुम धन शाली हो, तुम्हारी रक्षा-द्वारा धन की उन्नति करने में लगे रहते हैं।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
5. Through thy protection may we come to even the height of affluence Which Bhaga hath dealt out to us. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Through your protection may we come to even the height of affluence Which Bhaga has dealt out to us. [5]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
5. We are assiduous in attaining the summit of affluence, through the protection of you, who are the possessor of wealth.

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