ऋग्वेद 1.24.2

अग्नेर्वयं प्रथमस्यामृतानां मनामहे चारु देवस्य नाम। स नो मह्या अदितये पुनर्दात्पितरं च दृशेयं मातरं च॥2॥

पदपाठ — देवनागरी
अ॒ग्नेः। व॒यम्। प्रथ॒मस्य॑। अ॒मृता॑नाम्। मना॑महे। चारु॑। दे॒वस्य॑। नाम॑। सः। नः॑। म॒ह्यै। अदि॑तये। पुनः॑। दा॒त्। पि॒तर॑म्। च॒। दृ॒शेय॑म्। मा॒तर॑म्। च॒॥ 1.24.2

PADAPAATH — ROMAN
agneḥ | vayam | prathamasya | amṛtānām | manāmahe | cāru | devasya | nāma | saḥ | naḥ | mahyai | aditaye | punaḥ | dāt | pitaram | ca | dṛśeyam | mātaram | ca

देवता —        अग्निः ;       छन्द        त्रिष्टुप् ;      
स्वर        धैवतः;       ऋषि         शुनःशेप आजीगर्तिः  स कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हम लोग जिस (अग्ने) ज्ञानस्वरूप (अमृतानाम्) विनाश धर्म रहित पदार्थ वा मोक्ष प्राप्त जीवों में (प्रथमस्य) अनादि विस्तृत अद्वितीय स्वरूप (देवस्य) सब जगत् के प्रकाश करने वा संसार में सब पदार्थों के देने वाले परमेश्वर का (चारु) पवित्र (नाम) गुणों का गान करना (मनामहे) जानते हैं (सः) वही (नः) हमको (मह्यै) बड़े-बड़े गुणवाली (अदितये)पृथ्वी के बीच में (पुनः) फिर जन्म (दात्) देता है जिससे हम लोग (पुनः) फिर(पितरम्) पिता (च) और (मातरम्) माता (च) और स्त्री पुत्र बन्धु आदि को (दृशेयम्)देखते हैं॥2॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे मनुष्यो ! हम लोग जिस अनादि स्वरूप सदा अमर रहने वा जो हम सब लोगों के किये हुए पाप और पुण्यों के अनुसार यथायोग्य सुख-दुःख फल देनेवाले जगदीश्वर देव को निश्चय करते और जिसकी न्याययुक्त व्यवस्था में पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं तुम लोग भी उसी देव को जानो किन्तु इससे और कोई उक्त कर्म करनेवाला नहीं है ऐसा निश्चय हम लोगों को है कि वही मोक्षपदवी को पहुँचे हुए जीवों को भी महाकल्प के अन्त में फिर पाप-पुण्य की तुल्यता से पिता-माता और स्त्री आदि के बीच में मनुष्य जन्म धारण कराता है॥2॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
2. देवों में पहले अग्नि का सुन्दर नाम लेता हूँ, वह मुझे इस विशाल पृथिवी पर रहने दें, ताकि मैं मा-बाप के दर्शन कर सकूँ।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
2 Agni the God the first among the Immortals, – of his auspicious name let us bethink us. He shall to mighty Aditi restore us, that I may see my Father and my Mother. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Agni the god the first among the immortals, – of his auspicious name let us bethink us. He shall to mighty Aditi restore us, that I may see my Father and my Mother. [2]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
2.Let us invoke the auspicious name of Agni, the first divinity of the immortals, that he may give us to the great Adia, and that I may behold again my father and my mother.
A passage from the Aitareya Brahmana is cited by the Scholiast, stating that Prajapati said to him (SunahSepas), Have recourse to Agni, who is the nearest of the gods; upon which he resorted to Agni. Tam Prajapati-ruvacagnirvai devanam nedisthastam evopadhaveti: so Agnim upasasara.1

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