ऋग्वेद 1.24.13

शुनःशेपो ह्यह्वद्गृभीतस्त्रिष्वादित्यं द्रुपदेषु बद्धः। अवैनं राजा वरुणः ससृज्याद्विद्वाँ अदब्धो वि मुमोक्तु पाशान्॥13॥

पदपाठ — देवनागरी
शुनः॒शेपः॑। हि। अह्व॑त्। गृ॒भी॒तः। त्रि॒षु। आ॒दि॒त्यम्। द्रु॒ऽप॒देषु॑। ब॒द्धः। अव॑। ए॒न॒म्। राजा॑। वरु॑णः। स॒सृ॒ज्या॒त्। वि॒द्वान्। अद॑ब्धः। वि। मु॒मो॒क्तु॒। पासा॑न्॥ 1.24.13

PADAPAATH — ROMAN
śunaḥśepaḥ | hi | ahvat | gṛbhītaḥ | triṣu | ādityam | dru-padeṣu | baddhaḥ | ava | enam | rājā | varuṇaḥ | sasṛjyāt | vidvān | adabdhaḥ | vi | mumoktu | pāsān

देवता —        वरुणः;       छन्द        भुरिक्पङ्क्ति ;       स्वर        धैवतः;      
ऋषि         शुनःशेप आजीगर्तिः  स कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती जैसे (शुनः शेपः) उक्त गुणवाला विद्वान् (त्रिषु) कर्म उपासना और ज्ञान में(आदित्यम्) अविनाशी परमेश्वर का (अह्वत्) आह्वान करता है वह हम लोगों ने(गृभीतः) स्वीकार किया हुआ उक्त तीनों कर्म उपासना और ज्ञान को प्रकाशितकराता है। और जो (द्रुपदेषु) क्रिया कुशलता की सिद्धि के लिये विमान आदियानों के खम्भों में (बद्धः) नियम से युक्त किया हुआ वायु ग्रहण किया है।वैसे वह लोगों को भी ग्रहण करना चाहिये जैसे-जैसे गुणवाले पदार्थ को(अदब्धः) अति प्रशंसनीय (वरुणः) अत्यन्त श्रेष्ठ (राजा) और प्रकाशमानपरमेश्वर (अवससृज्यात्) पृथक्-पृथक् बनाकर सिद्ध करे। वह हम लोगों को भीवैसे ही गुणवाले कामों में संयुक्त करे। हे भगवन् परमेश्वर ! आप हमारे (पाशान्) बन्धनों को (विमुमोक्तु) बार-बार छुड़वाइये। इस प्रकार हम लोगों की क्रियाकुशलता में संयुक्त किये हुये प्राण आदि पदार्थ (पाशान्) सकल दरिद्ररूपीबन्धनों को (विमुमोक्तु) बार-बार छुड़वा देवें वा देते हैं॥13॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में भी लुप्तोपमा और श्लेषालंकार हैं। परमेश्वर ने जिस-जिस गुणवालेजो-जो पदार्थ बनाये हैं उन-उन पदार्थों के गुणों को यथावत् जानकर इन-इनको कर्म उपासना और ज्ञान में नियुक्त करे जैसे परमेश्वर न्याय अर्थात्न्याययुक्त कर्म करता है वैसे ही हम लोगों को भी कर्म नियम के साथनियुक्त कर जो बन्धनों के करनेवाले पापात्मक कर्म हैं उनको दूर ही सेछोड़कर पुण्यरूप कर्मों का सदा सेवन करना चाहिये॥13॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
13. शुनःशेप ने घृत और तीन काठों में आबद्ध होकर अदिति के पुत्र वरुण का आह्वान किया था। इसी लिए विद्वान् और दयालु वरुण ने शुनःशेप को मुक्त किया था, उनका बन्धन छुड़ा दिया था।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
13. Bound to three pillars captured Sunahsepa thus to the Aditya made his supplication. Him may the Sovran Varuna deliver, wise, ne’er deccived, loosen the bonds that bind him. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Bound to three pillars captured Sunahsepa thus to the Aditya made his supplication. Him may the Sovran Varuna deliver, wise, never deccived, loosen the bonds that bind him. [13]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
13. Sunahsepas, seized and bound to the three-footed tree, has invoked the son of Aditi: may the regal Varuna wise and irresistible, liberate him; may he let loose his bonds.
Trisu drupadesu. Druh, a tree, is here said to mean the sacrificial post, a sort of tripod; its specification is consistent with the popular legend.

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