ऋग्वेद 1.24.12
तदिन्नक्तं तद्दिवा मह्यमाहुस्तदयं केतो हृद आ वि चष्टे। शुनःशेपो यमह्वद्गृभीतः सो अस्मान्राजा वरुणो मुमोक्तु॥12॥
पदपाठ — देवनागरी
तत्। इत्। नक्त॑म्। तत्। दिवा॑। मह्य॑म्। आ॒हुः॒। तत्। अ॒यम्। केतः॑। हृ॒दः। आ। वि। च॒ष्टे॒। शुनः॒शेपः॑। यम्। अह्व॑त्। गृ॒भी॒तः। सः। अ॒स्मान्। राजा॑। वरु॑णः। मु॒मो॒क्तु॒॥ 1.24.12
PADAPAATH — ROMAN
tat | it | naktam | tat | divā | mahyam | āhuḥ | tat | ayam | ketaḥ | hṛdaḥ
| ā | vi | caṣṭe | śunaḥśepaḥ | yam | ahvat | gṛbhītaḥ | saḥ | asmān | rājā |
varuṇaḥ | mumoktu
देवता — वरुणः; छन्द — निचृत्त्रिष्टुप् ; स्वर — धैवतः;
ऋषि — शुनःशेप आजीगर्तिः स कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती विद्वान् लोग (नक्तम्) रात (दिवा) दिन जिस ज्ञान का (आहुः) उपदेश करते हैं (तत्)उस और जो (मह्यम्) विद्या धन की इच्छा करनेवाले मेरे लिये (हृदः) मन के साथआत्मा के बीच में (केतः) उत्तम बोध (आविचष्टे) सब प्रकार से सत्य प्रकाशित होता है(तदित्) उसी वेद बोध अर्थात् विज्ञान को मैं मानता कहता और करता हूँ (यम्)जिसको (शुनः शेपः) अत्यन्त ज्ञानवाले विद्या व्यवहार के लिये प्राप्त और परमेश्वर वासूर्य्य का (अह्वत्) उपदेश करते हैं जिससे (वरुणः) श्रेष्ठ (राजा) प्रकाशमान परमेश्वरहमारी उपासना को प्राप्त होकर (अस्मान्) हम पुरुषार्थी धर्मात्माओं को पाप और दुःखोंसे (मुमोक्तु) छुड़ावे और उक्त सूर्य्य भी अच्छे प्रकार जाना और क्रिया कुशलता में युक्तकिया हुआ बोध (मह्यम्) विद्या धन की इच्छा करनेवाले मुझको प्राप्त होता है (सः) हमलोगों को योग्य है कि उस ईश्वर की उपासना और सूर्य्य का उपयोग यथावत् किया करें॥12॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में श्लेषालंकार है। सब मनुष्यों को इस प्रकार उपदेश करना तथा माननाचाहिये कि विद्वान् वेद और ईश्वर हमारे लिये जिस ज्ञान का उपदेश करते हैं तथा हमजो अपनी शुद्ध बुद्धि से निश्चय करते हैं वही मुझको और हे मनुष्यो ! तुम सब लोगोंको स्वीकार करके पाप और अधर्म करने से दूर रखा करे॥12॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
12. दिन और रात, सदा लोभ में मुझसे ऐसा ही कहा गया है। मेरा हृदयस्थ ज्ञान भी यही गवाही देता है कि, आबद्ध होकर शुन:शेप ने जिस वरुण का आह्वान किया था, वही वरुणराज हम लोगों को मुक्तिदान करें।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
12 Nightly and daily this one thing they tell me, this too the thought of
mine own heart repeateth. May he to whom
prayed fettered Sunahsepa, may he the Sovran Varuna release us.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Nightly and daily this one thing they tell me, this too the thought of mine own heart repeateth. May he to whom prayed fettered Sunahsepa, may he the Sovran Varuna release us. [12]
H H Wilson (On the basis of Sayana)
12. This (your praise) they repeat to me by night and by day: this knowledge speaks to my heart; may he whom the fettered Sunahsepas has invoked, may the regal Varuna set us free.