ऋग्वेद 1.23.6

वरुणः प्राविता भुवन्मित्रो विश्वाभिरूतिभिः। करतां नः सुराधसः॥6॥

पदपाठ — देवनागरी
वरु॑णः। प्र॒ऽअ॒वि॒ता। भु॒व॒त्। मि॒त्रः। विश्वा॑भिः। ऊ॒तिऽभिः॑। कर॑ताम्। नः॒। सु॒ऽराध॑सः॥ 1.23.6

PADAPAATH — ROMAN
varuṇaḥ | pra-avitā | bhuvat | mitraḥ | viśvābhiḥ | ūti-bhiḥ | karatām | naḥ | su-rādhasaḥ

देवता —        मित्रावरुणौ ;       छन्द        गायत्री;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जैसे यह अच्छे प्रकार सेवन किया हुआ (वरुणः) बाहर वा भीतर रहनेवाला वायु (विश्वाभिः) सब (ऊतिभिः) रक्षा आदि निमित्तों से सब प्राणियों को पदार्थों करके (प्राविता) सुख प्राप्त करनेवाला (भुवत्) होता है (मित्रश्च) और सूर्य्य भी जो (नः) हम लोगों को (सुराधसः) सुन्दर विद्या और चक्रवर्त्ति राज्य सम्बन्धी धनयुक्त (करताम्) करते हैं जैसे विद्वान् लोग इनसे बहुत कार्य्यों को सिद्ध करते हैं वैसे हम लोग भी इसी प्रकार इनका सेवन क्यों न करें॥6॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। जिसलिये इन उक्त वायु और सूर्य्य के आश्रय करके सब पदार्थों के रक्षा आदि व्यवहार सिद्ध होते हैं। इसलिये विद्वान् लोग भी इनसे बहुत कार्य्यों को सिद्ध करके उत्तम-उत्तम धनों को प्राप्त होते हैं॥6॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
6. वरुण और मित्र सब तरह से हमारी रक्षा करते हैं। ये हमें यथेष्ट सम्पत्ति दें।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
6. Let Varuna be our chief defence, let Mitra guard us with all aids Both make us rich exceedingly. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Let Varuna be our chief defence, let Mitra guard us with all aids Both make us rich exceedingly. [6]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
6. May  varuna be our especial protector; may Mitra defend us with all defences; may they make us most opulent.

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