ऋग्वेद 1.23.3

इन्द्रवायू मनोजुवा विप्रा हवन्त ऊतये। सहस्राक्षा धियस्पती॥3॥

पदपाठ — देवनागरी
इ॒न्द्र॒वा॒यू इति॑। म॒नः॒ऽजुवा॑। विप्राः॑। ह॒व॒न्ते॒। ऊ॒तये॑। स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षा। धि॒यः। पती॒ इति॑॥ 1.23.3

PADAPAATH — ROMAN
indravāyū iti | manaḥ-juvā | viprāḥ | havante | ūtaye | sahasra-akṣā | dhiyaḥ | patī iti

देवता —        इन्द्रवायू ;       छन्द        गायत्री;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(विप्राः) विद्वान् लोग (ऊतये) क्रियासिद्धि की इच्छा के लिये जो (सहस्राक्षा) जिनसे असंख्यात अक्ष अर्थात् इन्द्रियवत् साधन सिद्ध होते (धियः) शिल्प कर्म के (पती) पालने और (मनोजुवा) मन के समान वेगवाले हैं उन (इन्द्रवायू) विद्युत् और पवन को (हवन्ते) ग्रहण करते हैं, उनके जानने की इच्छा अन्य लोग भी क्यों न करें॥3॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
विद्वानों को उचित है कि शिल्प विद्या की सिद्धि के लिये असंख्यात व्यवहारों को सिद्ध करानेवाले वेग आदि गुणयुक्त बिजुली और वायु के गुणों की क्रियासिद्धि के लिये अच्छे प्रकार सिद्धि करनी चाहिये॥3॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
3. यज्ञ-रक्षक इन्द्र और वायु मन के समान वेगवान् और सहस्राक्ष हैं। प्रतिभाशाली मनुष्य अपने रक्षण के लिए दोनों का आह्वान करते हैं।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
3. The singers’ for their aid, invoke Indra and Vayu, swift as mind, The thousand-eyed, the Lords of thought. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
The singers’ for their aid, invoke Indra and Vayu, swift as mind, The thousand-eyed, the lords of thought. [3]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
3. The wise invoke, for their preservaaon, Indra and Vayu, who are swift as thought, have a thousand eyes, and are protectors of pious acts.
The attribuaon of a thousand eyes to Indra, literally understood, is a Pauranika legend; it is nowhere said of Vayu, and here is applied to him, it is said, only by the grammaacal construcaon, Sahasraksau being in the dual, to agree with the two substanaves Indra and Vayu; and it is probably stated of Indra, or the personified heaven, either to signify its expansiveness, or its being studded with constellaaons, whence it suggested the legend. In like manner, Manojava, 1. swift as thought, although equally in the dual number, is properly applicable to Vayu only.

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