ऋग्वेद 1.23.12
हस्काराद्विद्युतस्पर्यतो जाता अवन्तु नः। मरुतो मृळयन्तु नः॥12॥
पदपाठ — देवनागरी
ह॒स्का॒रात्। वि॒ऽद्युतः॑। परि॑। अतः॑। जा॒ताः। अ॒व॒न्तु॒। नः॒। म॒रुतः॑। मृ॒ळ॒य॒न्तु॒। नः॒॥ 1.23.12
PADAPAATH — ROMAN
haskārāt | vi-dyutaḥ | pari | ataḥ | jātāḥ | avantu | naḥ | marutaḥ | mṛḷayantu
| naḥ
देवता — विश्वेदेवा:; छन्द — निचृद्गायत्री ;
स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हम लोग जिस कारण (हस्कारात्) अतिप्रकाश से (जाताः) प्रकट हुईं (विद्युतः) जो कि चपलता के साथ प्रकाशित होती है वे बिजुली (नः) हम लोगों के सुखों को (अवन्तु) प्राप्त करती हैं। जिससे उनको (परि) सब प्रकार से साधते और जिससे (मरुतः) पवन (नः) हम लोगों को (मृळयन्तु) सुखयुक्त करते हैं (अतः) इससे उनको भी शिल्प आदि कार्यों में (परि) अच्छे प्रकार से साधें॥12॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मनुष्य लोग जब पहिले वायु फिर बिजुली के अनन्तर जल पृथिवी और ओषधि की विद्या को जानते हैं तथा अच्छे प्रकार सुखों को प्राप्त होते हैं॥12॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
12. प्रकाशमयी बिजली से उत्पन्न मरुत् लोग हमारा रक्षण और सुख-विधान करें।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
12 Born of the laughing lightning. may the Maruts guard us everywhere May
they be gracious unto Us.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
Born of the laughing lightning. may the Maruts guard us everywhere May they
be gracious to Us. [12]
H H Wilson (On the basis of
Sayana)
12. May the Maruts, born from the brilliant lightning, everywhere
preserve us, and make us happy. Haskarad-vidyutah; the Scholiast explains
the latter, variously shining, that is, the Antariksa or firmament;
but it does not seen necessary to depart from the usual sense
of Vidyut, lightning.