ऋग्वेद 1.20.3

तक्षन्नासत्याभ्यां परिज्मानं सुखं रथम्। तक्षन्धेनुं सबर्दुघाम्॥3॥

पदपाठ — देवनागरी
तक्ष॑न्। नास॑त्याभ्याम्। परि॑ऽज्मानम्। सु॒ऽखम्। रथ॑म्। तक्ष॑न्। धे॒नुम्। स॒बः॒ऽदुघा॑म्॥ 1.20.3

PADAPAATH — ROMAN
takṣan | nāsatyābhyām | pari-jmānam | su-kham | ratham | takṣan | dhenum | sabaḥ-dughām

देवता —        ऋभवः ;       छन्द        विराड्गायत्री ;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो बुद्धिमान् विद्वान् लोग (नासत्याभ्याम्) अग्नि और जल से (परिज्मानम्) जिससे सब जगह में जाना-आना बने उस (सुखम्) सुशोभित विस्तारवाले (रथम्) विमान आदि रथ को (तक्षन्) क्रिया से बनाते हैं, वे (सबर्दुघाम्) सब ज्ञान को पूर्ण करनेवाली (धेनुम्) वाणी को (तक्षन्) सूक्ष्म करते हुये धीरज से प्रकाशित करते हैं॥3॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो मनुष्य अंग उपांग और उपवेदों के साथ वेदों को पढ़कर उनसे प्राप्त हुये विज्ञान से अग्नि आदि पदार्थों के गुणों को जानकर कलायन्त्रों से सिद्ध होनेवाले विमान आदि रथों में संयुक्त करके उनको सिद्ध किया करते हैं, वे कभी दु:ख और दरिद्रता आदि दोषों को नहीं देखते॥3॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
3. ऋभुओं ने अश्विनीकुमारद्वय के लिए सर्वत्र-गन्ता और सुखवाही एक रथ का निर्माण किया था और दूध देनेवाली एक गाय भी पैदा की थी।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
3. They for the two Nasatyas wrought a light car moving every way: They formed a nectar-yielding cow. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
They for the two Nasatyas wrought a light car moving every way: They formed a nectar-yielding cow. [3]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
3. They construted for the Nasatyas,2 a universally-moving and easy car, and a cow yielding milk.
Taksan, for atakan; literally, they chipped or fabricated; so in the preceding verse, they carved (tataksuh) Indra’s horse. There it is said they did so mentally (manasa); but in this verse there is no such qualification, and the meaning of the verb implies mechanical formation. The Rbus may have been the first to attempt the bodily representation of these appendages of Indra and the Asvins.

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