ऋग्वेद 1.19.9
अभि त्वा पूर्वपीतये सृजामि सोम्यं मधु। मरुद्भिरग्न आ गहि॥9॥
पदपाठ — देवनागरी
अ॒भि। त्वा॒। पू॒र्वऽपी॑तये। सृ॒जामि॑। सो॒म्यम्। मधु॑। म॒रुत्ऽभिः॑। अ॒ग्ने॒। आ। ग॒हि॒॥ 1.19.9
PADAPAATH — ROMAN
abhi | tvā | pūrva-pītaye | sṛjāmi | somyam | madhu | marut-bhiḥ | agne | ā
| gahi
देवता — अग्निर्मरुतश्च ; छन्द — पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री;
स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जिन (मरुद्भिः) पवनों से (अग्ने) भौतिक अग्नि (आगहि) कार्य्यसाधक होता है,उनसे (पूर्वपीतये) पहिले जिसमें पीति अर्थात् सुख का भोग है, उस उत्तम आनन्द के लिये (सोम्यम्) जो कि सुखों के उत्पन्न करने योग्य है, (त्वा) उस (मधु) मधुर आनन्द देनेवाले पदार्थों के रस को मैं (अभिसृजामि) सब प्रकार से उत्पन्न करता हूँ॥9॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
विद्वान् लोग जिन वायु अग्नि आदि पदार्थों के अनुयोग से सब शिल्प क्रियारूपी यज्ञ को सिद्ध करते हैं, उन्हीं पदार्थों से सब मनुष्यों को सब कार्य्य सिद्ध करने चाहिये॥9॥ अठारहवें सूक्त में कहे हुए बृहस्पति आदि पदार्थों के साथ इस सूक्त से जिन अग्नि वा वायु का प्रतिपादन है, उनकी विद्या की एकता होने से इस उन्नीसवें सूक्त की संगति जाननी चाहिये। इस अध्याय में अग्नि और वायु आदि पदार्थों की विद्या के उपयोग के लिये प्रतिपादन करता और पवनों के साथ रहनेवाले अग्नि का प्रकाश करता हुआ परमेश्वर अध्याय की समाप्ति को प्रकाशित करता है॥
यह भी सूक्त सायणाचार्य्य आदि तथा यूरोपदेशवासी विलसन आदि ने कुछ का कुछ ही वर्णन किया है॥
यह प्रथम अष्टक में प्रथम अध्याय, उन्नीसवां सूक्त और सेंतीसवां वर्ग समाप्त हुआ॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
9. तुम्हारे प्रथम पान के लिए सोम-मधु दे रहा हूँ। अग्निदेव! मरुदगण के साथ आओ।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
9. For thee, to be thine early draught, I pour the Soma-mingled meath: O
Agni, with the Maruts come.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
For you, to be your early draught, I pour the soma-mingled meath: Agni, with the Maruts come.
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
9. I pour out the sweet Soma juice for your drinking, (as) of old: come, Agni, with the Maruts.