ऋग्वेद 1.18.9
नराशंसं सुधृष्टममपश्यं सप्रथस्तमम्। दिवो न सद्ममखसम्॥9॥
पदपाठ — देवनागरी
नरा॒शंस॑म्। सु॒धृष्ट॑मम्। अप॑श्यम्। स॒प्रथः॑ऽतमम्। दि॒वः। न। सद्म॑ऽमखसम्॥ 1.18.9
PADAPAATH — ROMAN
narāśaṃsam | sudhṛṣṭamam | apaśyam | saprathaḥ-tamam | divaḥ | na | sadma-makhasam
देवता — सदसस्पतिर्नराशंसो वा ; छन्द — गायत्री;
स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मैं (न) जैसे प्रकाशमय सूर्य्यादिकों के प्रकाश से (सद्ममखसम्) जिसमें प्राणी स्थिर होते और जिसमें जगत् प्राप्त होता है, (सप्रथस्तमम्) जो बड़े-2 आकाश आदि पदार्थों के साथ अच्छी प्रकार व्याप्त (सुधृष्टमम्) उत्तमता से सब संसार को धारण करने (नराशंसम्) सब मनुष्यों को अवश्य स्तुति करने योग्य पूर्वोक्त (सदसस्पतिम्) सभापति परमेश्वर को (अपश्यम्) ज्ञानदृष्टि से देखता हूँ, वैसे तुम भी सभाओं के पति को प्राप्त होके न्याय सेसब प्रजा का पालन करके नित्य दर्शन करो॥9॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में उपमालंकार है। जैसे मनुष्य सब जगह विस्तृत हुए सूर्य्यादि के प्रकाश को देखता है, वैसे ही सब जगह व्याप्त ज्ञान प्रकाशरूप परमेश्वर को जानकर सुख के विस्तार को प्राप्त होता है।
इस मन्त्र में सातवें मन्त्र से (सदसस्पतिम्) इस पद की अनुवृत्ति जाननी चाहिये॥9॥ पूर्व सत्रहवें सूक्त के अर्थ के साथ मित्र और वरुण के साथ अनुयोगि बृहस्पति आदि अर्थों के प्रतिपादन से इस अठारहवें सूक्त के अर्थ की संगति जाननी चाहिये॥
यह भी सूक्त सायणाचार्य्य आदि और यूरोपदेशवासी विलसन आदि ने कुछ का कुछ ही वर्णन किया है॥
यह अठारहवां सूक्त और पेंतीसवां वर्ग पूरा हुआ॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
9. प्रतापशाली, प्रसिद्ध और आकाश की तरह तेजस्वी, नराशंस देवता को मैं देख चुका हूँ।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
9. I have seen Narasamsa, him most resolute, most widely famed, As ’twere
the Household Priest of heaven.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
I have seen Narasamsa, him most resolute, most widely famed, As it were the
Household priest of heaven.
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
9. I have beheld Narasamsa, the most resolute, the most renowned, and radiant as the heavens.
Narasamsa- This has already occurred (Verse) as an appellative of Agni, and confirms the application of Sadasaspati and Brahmanaspati to the same divinity. According to the Katthakya,1. it means the personified yajna, or sacrifice, at which men (nara) praise (samsanti) the gods; according to Sakapuni, it is as before (1.4.3). Agni, he who is to be praised of men. The same explanation is quoted from the Brtihmana:2 I beheld (with the eye of the Vedas) that divinity Sadasaspati, who is to be praised by men, who is also called Narasamsa.