ऋग्वेद 1.17.9

प्र वामश्नोतु सुष्टुतिरिन्द्रावरुण यां हुवे। यामृधाथे सधस्तुतिम्॥9॥

पदपाठ — देवनागरी
प्र। वा॒म्। अ॒श्नो॒तु॒। सुऽस्तु॒तिः। इन्द्रा॑वरुणा। याम्। हु॒वे। याम्। ऋ॒धाथे॑ इति॑। स॒धऽस्तु॑तिम्॥ 1.17.9

PADAPAATH — ROMAN
pra | vām | aśnotu | su-stutiḥ | indrāvaruṇā | yām | huve | yām | ṛdhātheiti | sadha-stutim

देवता —        इन्द्रावरुणौ ;       छन्द        गायत्री;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मैं जिस प्रकार से इस संसार में जिन इन्द्र और वरुण के गुणों की यह (सुष्टुतिः) अच्छी स्तुति (प्राश्नोतु) अच्छी प्रकार व्याप्त होवे, उसको (हुवे) ग्रहण करता हूँ और (याम्) जिस (सधस्तुतिम्) कीर्त्ति के साथ शिल्पविद्या को (वाम्) जो (इन्द्रावरुणौ) इन्द्र और वरुण (ॠधाथे) बढ़ाते हैं, उस शिल्पविद्या को (हुवे) ग्रहण करता हूँ॥9॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। मनुष्यों को जिस पदार्थ के जैसे गुण हैं उनको वैसे ही जानकर और उनसे सदैव उपकार ग्रहण करना चाहिये, इस प्रकार ईश्वर का उपदेश है॥9॥               पूर्वोक्त सोलहवें सूक्त के अनुयोगी मित्र और वरुण के अर्थ का इस सूक्त में प्रतिपादन करने से इस सत्रहवें सूक्त के अर्थ के साथ सोलहवें सूक्त के अर्थ की संगति करनी चाहिये॥
 इस सूक्त का भी अर्थ सायणाचार्य्य आदि तथा यूरोपदेशवासी विलसन आदि ने कुछ का कुछ ही वर्णन किया है॥
यह चौथा अनुवाक, सत्रहवां सूक्त और तेतीसवां वर्ग समाप्त हुआ॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
9. इन्द्र और वरुण! जिस स्तुति से हम तुम्हें बुलाते हैं, अपनी जिस स्तुति को तुम परिवर्द्धित करते हो, वही सुशोभन स्तुति तुम्हें प्राप्त हो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
9. O Indra-Varuna, to you may fair praise which I offer come, joint eulogy which ye dignify. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Indra-Varuna, to you may fair praise which I offer come, joint eulogy which you dignify.

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
9. May the earnest praise which I offer to Indra and Varuna reach you both- that conjoint praise which you (accepting), dignify.

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