ऋग्वेद 1.17.7
इन्द्रावरुण वामहं हुवे चित्राय राधसे। अस्मान्त्सु जिग्युषस्कृतम्॥7॥
पदपाठ — देवनागरी
इन्द्रा॑वरुणा। वा॒म्। अ॒हम्। हु॒वे। चि॒त्राय॑। राध॑से। अ॒स्मान्। सु। जि॒ग्युषः॑। कृ॒त॒म्॥ 1.17.7
PADAPAATH — ROMAN
indrāvaruṇā | vām | aham | huve | citrāya | rādhase | asmān | su | jigyuṣaḥ
| kṛtam
देवता — इन्द्रावरुणौ ; छन्द — गायत्री;
स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो अच्छी प्रकार क्रिया कुशलता में प्रयोग किये हुए (अस्मान्) हम लोगों को (सुजिग्युषः) उत्तम विजययुक्त (कृतम्) करते हैं, (वाम्) उन इन्द्र और वरुण को (चित्राय) जो कि आश्चर्य्यरूप राज्य सेना नौकर पुत्र मित्र सोना रत्न हाथी घोड़े आदि पदार्थों से भरा हुआ (राधसे) जिससे उत्तम-2 सुखों को सिद्ध करते हैं, उस सुख के लिये (अहम्) मैं मनुष्य (हुवे) ग्रहण करता हूँ॥7॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो मनुष्य अच्छी प्रकार साधन किये हुये मित्र और वरुण को कामों में युक्त करते हैं, वे नानाप्रकार के धन आदि पदार्थ वा विजय आदि सुखों को प्राप्त होकर आप सुखसंयुक्त होते तथा औरों को भी सुखसंयुक्त करते हैं॥7॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
7. इन्द्र और वरुण! तरह-तरह के धनों के लिए मैं तुम लोगों को बुलाता हूँ। हमें भली भाँति विजयी बनाओ।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
7. O Indra-Varuna, on you for wealth in many a form I call: Still keep ye
us victorious.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Indra-Varuna, on you for wealth in many a form I call: Still keep us victorious. [7]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
7. I invoke you both, Indra and Varuna, for manifold opulence: make us victorious (over our enemies).