ऋग्वेद 1.16.3
इन्द्रं प्रातर्हवामह इन्द्रं प्रयत्यध्वरे।
इन्द्रं सोमस्य पीतये॥3॥
पदपाठ — देवनागरी
इन्द्र॑म्। प्रा॒तः। ह॒वा॒म॒हे॒। इन्द्र॑म्। प्र॒ऽय॒ति। अ॒ध्व॒रे। इन्द्र॑म्। सोम॑स्य। पी॒तये॑॥ 1.16.3
PADAPAATH — ROMAN
indram | prātaḥ | havāmahe | indram | pra-yati | adhvare | indram | somasya
| pītaye
देवता — इन्द्र:; छन्द — पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री;
स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि
दयानन्द सरस्वती
हम लोग (प्रातः) नित्य प्रति (इन्द्रम्)
परम ऐश्वर्य्य देनेवाले ईश्वर का (प्रयत्यध्वरे) बुद्धिप्रद उपासना यज्ञ में
(हवामहे) आह्वान करें। हम लोग (प्रयति) उत्तम ज्ञान देनेवाले (अध्वरे)
क्रिया से सिद्ध होने योग्य यज्ञ में (प्रातः) प्रतिदिन (इन्द्रम्) उत्तम
ऐश्वर्य्यसाधक विद्युत् अग्नि को (हवामहे) क्रियाओं में उपदेश कह सुनके संयुक्त
करें,तथा
हम लोग (सोमस्य) सब पदार्थों के सार रस को (पीतये) पीने के लिये (प्रातः) प्रतिदिन
यज्ञ में (इन्द्रम्) बाहरले वा शरीर के भीतरले प्राण को (हवामहे) विचार में लावें, और उसके सिद्ध करने का विचार करें॥3॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों को परमेश्वर प्रतिदिन उपासना करने योग्य है, और उसकी आज्ञा के अनुकूल वर्त्तना चाहिये, बिजुली तथा जो प्राणरूप वायु है उसकी विद्या से पदार्थों का भोग करना चाहिये॥3॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
3. मैं प्रातःकाल इन्द्र को बुलाता हूँ, यज्ञ-सम्पादन-काल में इन्द्र को बुलाता हूँ और यज्ञ-समाप्ति-समय में, सोमपान के लिए, इन्द्र को बुलाता हूँ।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
3. Indra at early morn we call, Indra in course of sacrifice, Indra to drink the Soma juice.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
Indra at early morn we call, Indra in course of sacrifice, Indra to drink
the soma juice. [3]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
3. We invoke Indra at the morning rite, we invoke him at the succeeding sacrifice, we invoke Indra to drink the Soma juice.
Although not more particularly named, the specification implies the morning, midday and evening worship.