ऋग्वेदः 1.9.10

सुतेसुते न्योकसे बृहद्बृहत एदरिः। इन्द्राय शूषमर्चति॥10॥

पदपाठ — देवनागरी
सु॒तेऽसु॑ते। निऽओ॑कसे। बृ॒हत्। बृ॒ह॒ते। आ। इत्। अ॒रिः। इन्द्रा॑य। शू॒षम्। अ॒र्च॒ति॒॥ 1.9.10

PADAPAATH — ROMAN
sute–sute | ni-okase | bṛhat | bṛhate | ā | it | ariḥ | indrāya | śūṣam | arcati

देवता        इन्द्र:;       छन्द        निचृद्गायत्री ;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो, (अरिः) सब श्रेष्ठ गुण और उत्तम सुखों को प्राप्त होनेवाला विद्वान्मनुष्य, (सुतेसुते) उत्पन्न उत्पन्न हुये सब पदार्थों में, (वृहते) सम्पूर्ण श्रेष्ठ गुणों में महान् सबमें व्याप्त, (न्योकसे) निश्चित जिसके निवास स्थान हैं, (इत्) उसी, (इन्द्राय) परमेश्वर के लिये अपने, (बृहत्) सब प्रकार से बड़े हुये, (शूषं) बल और सुख को, (आ) अच्छी प्रकार, (अर्चति) समर्पण करता है वही बलवान् होता है॥10॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
ति नम्र होता है, तो जो ईश्वर की आज्ञा और उसकी उपासना में वर्त्तमान मनुष्य हैं। वे ईश्वर के लिये नम्र क्यों न हों ? जो ऐसे हैं वे ही बडे-2 गुणों से महात्मा होकर सबसे सत्कार किये जाने के योग्य होते, और वे ही विद्या और चक्रवर्त्ति राज्य के आनन्द को प्राप्त होते हैं। जो कि उससे विपरीत हैं, वे उस आनन्द को कभी नहीं प्राप्त हो सकते॥
इस सूक्त में इन्द्र शब्द के अर्थ के वर्णन, उत्तम-2 धन आदि की प्राप्ति के अर्थ ईश्वर की प्रार्थना और अपने पुरुषार्थ करने की आज्ञा के प्रतिपादन करने से इस नवमे सूक्त के अर्थ की संगति आठवें सूक्त के अर्थ के साथ मिलती है, ऐसा समझना चाहिये॥10॥
इस सूक्त का भी अर्थ सायणाचार्य आदि आर्य्यावर्त्त वासियों तथा विलसन आदि अंग्रेज लोगों ने सर्वथा मूल से विरुद्ध वर्णन किया है। 
                  यह नवमाँ सूक्त और अठारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ॥10॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
10. प्रत्येक यज्ञ में यजमान लोग सदाधिवासी और प्रौढ़ इन्द्र के महान् पराक्रम की प्रशंसा करते हैं।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
10. To lofty Indra, dweller by each libation, the pious man Sings forth aloud a strengthening HYMN. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
To lofty Indra, dweller by each libation, the pious man Sings forth aloud a strengthening hymn. [10]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
10. With libations repeatedly effused, the sacrificer glorifies the vast prowess of Indra, the mighty, the dweller in (an eternal mansion).
Dweller- The epithet is Nyokas,1. from ni, explained niyata, fixed, permanent, and okas, dwelling.

You may also like...