ऋग्वेदः 1.2.8
ऋतेन मित्रावरुणावृतावृधावृतस्पृशा । क्रतुं बृहन्तमाशाथे ॥8॥
पदपाठ — देवनागरी
ऋ॒तेन॑
। मि॒त्रा॒व॒रु॒णौ॒ । ऋ॒ता॒ऽवृ॒धौ॒ । ऋ॒त॒ऽस्पृ॒शा॒ । क्रतु॑म् । बृ॒हन्त॑म् ।
आ॒शा॒थे॒ इति॑ ॥ 1.2.8
PADAPAATH — ROMAN
ṛtena | mitrāvaruṇau | ṛtāvṛdhau | ṛta-spṛśā | kratum | bṛhantam |
āśātheiti
देवता
— मित्रावरुणौ ; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(ॠतेन) सत्यस्वरूप ब्रह्म के नियम में बन्धे हुए (ॠतावृधौ) ब्रह्मज्ञान बढ़ाने, जलके खींचने और वर्षाने (ॠतस्पृशा0) ब्रह्म की प्राप्ति कराने में निमित्त तथा उचित समय पर जलवृष्टि के करनेवाले (मित्रावरुणौ) पूर्वोक्त मित्र और वरुण (बृहन्तम्) अनेक प्रकार के (क्रतुम्) जगत् रूप यज्ञ को (आशाथे) व्याप्त होते हैं ॥8॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
परमेश्वर के आश्रय से उक्त मित्र और वरुण ब्रह्मज्ञान के निमित्त जल वर्षानेवाले सब मूर्त्तिमान् वा अमूर्त्तिमान् जगत को व्याप्त होकर उसकी वृद्धि विनाश और व्यवहारों की सिद्धि करने में हेतु होते हैं ॥8॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
8. हे यज्ञ-वर्द्धक और यज्ञ-स्पर्शी मित्र और वरुण! तुम लोग, यज्ञ-फल देने के लिए, इस विशाल यज्ञ को व्याप्त किये हुए हो।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
8. Mitra and Varuna, through Law, lovers and cherishers of Law, Have ye obtained your might power.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Mitra and Varuna, through law, lovers and cherishers of law, Have you obtained your mighty power. [8]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
8. Mitra and Varuna, augmenters of water, dispensers of water, you connect this perfect rite with its true (reward).
Augmenters of Water- Rtavrdhau. Rta1 usually means true or truth, but in the Veda it imports also water and sacrifice.