ऋग्वेदः 1.14.5
ईळते त्वामवस्यवः कण्वासो वृक्तबर्हिषः। हविष्मन्तो अरंकृतः॥5॥
पदपाठ — देवनागरी
ईळ॑ते। त्वाम्। अ॒व॒स्यवः॑। कण्वा॑सः। वृ॒क्तऽब॑र्हिषः। ह॒विष्म॑न्तः। अ॒र॒म्ऽकृतः॑॥ 1.14.5
PADAPAATH — ROMAN
īḷate | tvām | avasyavaḥ | kaṇvāsaḥ | vṛkta-barhiṣaḥ | haviṣmantaḥ | aram-kṛtaḥ
देवता — विश्वेदेवा:; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे जगदीश्वर ! हम लोग जिनके (हविष्मन्तः) देने-लेने और भोजन करने योग्य पदार्थ विद्यमान हैं, तथा (अरंकृतः) जो सब पदार्थों को सुशोभित करनेवाले हैं,(अवस्यवः) जिनका अपनी रक्षा चाहने का स्वभाव है, वे (कण्वासः) बुद्धिमान् और (वृक्तबर्हिषः) यथाकाल यज्ञ करनेवाले विद्वान् लोग जिस (त्वाम्) सब जगत् के उत्पन्न करनेवाले आपकी (ईडते) स्तुति करते हैं, उसी प्रकार स्तुति करें॥5॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे सृष्टि के उत्पन्न करनेवाले परमेश्वर ! जिस आपने सब प्राणियों के सुख के लिये सब पदार्थों को रचकर धारण किये हैं, इससे हम लोग आपही की स्तुति,सबकी रक्षा की इच्छा, शिक्षा और विद्या से सब मनुष्यों को भूषित करते हुएउत्तम क्रियाओं के लिये निरन्तर अच्छी प्रकार यत्न करते रहें॥5॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
5. अग्निदेव! हव्य-संयुक्त और विभूषित कण्व-पुत्र कुश तोड़कर तुमसे रक्षा पाने की अभिलाषा से तुम्हारी स्तुति कर रहे हैं।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
5. The sons of Kanva fain for help adore thee, having strewn the grass,
With offerings and all things prepared.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
The sons of Kanva fain for help adore you, having strewn the grass, With
offerings and all things prepared. [5]
Horace Hayman Wilson (On the
basis of Sayana)
5. The wise priests desirous of the protection (of the gods) having spread
the sacred grass, presenting oblations, and offering ornaments, praise you.