ऋग्वेदः 1.13.5
स्तृणीत बर्हिरानुषग्घृतपृष्ठं मनीषिणः। यत्रामृतस्य चक्षणम्॥5॥
पदपाठ — देवनागरी
स्तृ॒णी॒त। ब॒र्हिः। आ॒नु॒षक्। घृ॒तऽपृ॑ष्ठम्। म॒नी॒षि॒णः॒। यत्र॑। अ॒मृत॑स्य। चक्ष॑णम्॥ 1.13.5
PADAPAATH — ROMAN
stṛṇīta | barhiḥ | ānuṣak | ghṛta-pṛṣṭham | manīṣiṇaḥ | yatra | amṛtasya |
cakṣaṇam
देवता — बर्हिः ; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (मनीषिणः) बुद्धिमान् विद्वानो ! (यत्र) जिस अन्तरिक्ष में (अमृतस्य) जलसमूह का (चक्षणम्) दर्शन होता है, उस (आनुषक्) चारों ओर से घिरे और (घृतपृष्ठम्) जल से भरे हुए (बर्हिः) अन्तरिक्ष को (स्तृणीत) होम के धूम से आच्छादन करो, उसी अन्तरिक्ष में अन्य भी बहुत पदार्थ जल आदि को जानो॥5॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
विद्वान् लोग अग्नि में जो घृत आदि पदार्थ छोड़ते हैं, वे अन्तरिक्ष को प्राप्त होकर वहाँ के ठहरे हुए जल को शुद्ध करते हैं, और वह शुद्ध हुआ जल सुगन्धि आदि गुणों से सब पदार्थों को आच्छादन करके सब प्राणियों को सुखयुक्त करता है॥5॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
5. बुद्धिशाली ऋत्विक्! परस्पर-संबद्ध और घी से आच्छादित बर्हि:-(अग्नि)-कुश विस्तार करो। कुश के ऊपर घी दिखाई देता है।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
5. Strew, O ye wise, the sacred grass that drips with oil, in order due,
Where the Immortal is beheld.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
Strew, you wise, the sacred grass that drips with oil, in order due, Where
the immortal is beheld. [5]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
5. Strew, learned priests, the sacred grass, well bound together (in bundles), and sprinkled with clarified butter, the semblance of ambrosia.
Barhis is said here to be an appellative also of Agni; the double meaning pervades the concluding phrase, wherein (in which grass, or in which Agni) is the appearance of ambrosia, amrta-darsanam;2 amrta implying either the clarified butter sprinkled on the grass, or the immortal Agni. Amrta-samanasya ghrtasya, or marana-rahitasya Barhirnamakasya, Agneh.