ऋग्वेदः 1.12.4

ताँ उशतो वि बोधय यदग्ने यासि दूत्यम्। देवैरा सत्सि बर्हिषि॥4॥

पदपाठ — देवनागरी
तान्। उ॒श॒तः। वि। बो॒ध॒य॒। यत्। अ॒ग्ने॒। यासि॑। दू॒त्य॑म्। दे॒वैः। आ। स॒त्सि॒। ब॒र्हिषि॑॥ 1.12.4

PADAPAATH — ROMAN
tān | uśataḥ | vi | bodhaya | yat | agne | yāsi | dūtyam | devaiḥ | ā | satsi | barhiṣi

देवता        अग्निः ;       छन्द        पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री;      
स्वर       षड्जः;      
ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
यह (अग्ने) अग्नि (यत्) जिस कारण (बर्हिषि) अन्तरिक्ष में (देवैः) दिव्य पदार्थों के संयोग से (दूत्यम्) दूतभाव को (आयासि) सब प्रकार से प्राप्त होता है, (तान्) उन दिव्य गुणों को (विबोधय) विदित करानेवाला होता और उन पदार्थों के (सत्सि) दोषों का विनाश करता है, इससे सब मनुष्यों को विद्या सिद्धि के लिये इस अग्नि की ठीक-2 परीक्षा करके प्रयोग करना चाहिये॥4॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
परमेश्वर आज्ञा देता है कि– हे मनुष्यों  ! यह अग्नि तुम्हारा दूत है, क्योंकि हवन किये हुए परमाणु-रूप पदार्थों को अन्तरिक्ष में पहुँचाता और उत्तम-2 भोगों की प्राप्ति का हेतु है। इससे सब मनुष्यों को अग्नि के जो प्रसिद्ध गुण हैं, उनको संसार में अपने कार्य्यों की सिद्धि के लिये अवश्य प्रकाशित करना चाहिये॥4॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
4. अग्निदेव! चूंकि देवताओं का दूत-कर्म तुम्हें प्राप्त हो चुका है; इसलिए हव्याकांक्षी देवों को जगाओ। देवों के साथ इस कुश युक्त यज्ञ में बैठो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
4. Wake up the willing Gods, since thou, Agni, performest embassage: Sit on the sacred grass with Gods. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Wake up the willing gods, since you, Agni, perform embassage: Sit on the sacred grass with gods. [4]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
4. As your discharge the duty of messenger, arouse them desirous of the oblation; sit down with them on the sacred grass.

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