ऋग्वेदः 1.11.2

सख्ये त इन्द्र वाजिनो मा भेम शवसस्पते। त्वामभि प्र णोनुमो जेतारमपराजितम्॥2॥

पदपाठ — देवनागरी
स॒ख्ये। ते॒। इ॒न्द्र॒। वा॒जिनः॑। मा। भे॒म॒। श॒व॒सः॒। प॒ते॒। त्वाम्। अ॒भि। प्र। नो॒नु॒मः॒। जेता॑रम्। अप॑राऽजितम्॥ 1.11.2

PADAPAATH — ROMAN
sakhye | te | indra | vājinaḥ | mā | bhema | śavasaḥ | pate | tvām | abhi | pra | nonumaḥ | jetāram | aparājitam

देवता       इन्द्र:;       छन्द       निचृदनुष्टुप्;       स्वर        गान्धारः ;      
ऋषि        जेता माधुच्छ्न्दसः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (शवसः) अनन्तबल वा सेनाबल के (पते) पालनकरने हारे ईश्वर वा अध्यक्ष !(अभिजेतारम्) प्रत्यक्ष शत्रुओं को जिताने वा जीतनेवाले (अपराजितम्) जिसका पराजय कोई भी न कर सके (त्वा) उस आपको (वाजिनः) उत्तम विद्या वा बलसे अपने शरीर के उत्तम बल वा समुदाय को जानते हुए हम लोग (प्रणोनुमः) अच्छी प्रकार आपकी बार-2 स्तुति करते हैं, जिससे (इन्द्र) हे सब प्रजा वा सेना के स्वामी ! (ते) आप जगदीश्वर वा सभाध्यक्ष के साथ (सख्ये) हम लोग मित्रभाव करके शत्रुओं वा दुष्टों से कभी (माभेम) भय न करें॥2॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में श्लेषालंकार है। जो मनुष्य परमेश्वर की आज्ञा के पालने वा और अपने धर्मानुष्ठान से परमात्मा तथा शूरवीर आदि मनुष्यों में मित्रभाव अर्थात् प्रीति रखते हैं, वे बलवाले होकर किसी मनुष्य से पराजय वा भय को प्राप्त कभी नहीं होते॥2॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
2. दलपति इन्द्र! तुम्हारी मित्रता से हम ऎसे शक्तिशाली हों कि, हमें भय न मालूम पड़े। इन्द्र! तुम जयशील और अपराजेय हो। हम तुम्हारी स्तुति करते हैं।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
2. Strong in thy friendship, Indra, Lord of power and might, we have no fear. We glorify with praises thee, the never-conquered conqueror. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Strong in your friendship, Indra, Lord of power and might, we have no fear. We glorify with praises you, the never-conquered conqueror. [2]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
2. Supported by your friendship, Indra, cherisher of strength, we have no fear, but glorify you, the conqueror, the unconquered.

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