ऋग्वेदः 1.10.9

आश्रुत्कर्ण श्रुधी हवं नू चिद्दधिष्व मे गिरः। इन्द्र स्तोममिमं मम कृष्वा युजश्चिदन्तरम्॥9॥

पदपाठ — देवनागरी
आश्रु॑त्ऽकर्ण। श्रु॒धि। हव॑म्। नू। चि॒त्। द॒धि॒ष्व॒। मे॒। गिरः॑। इन्द्र॑। स्तोम॑म्। इ॒मम्। मम॑। कृ॒ष्व। यु॒जः। चि॒त्। अन्त॑रम्॥ 1.10.9

PADAPAATH — ROMAN
āśrut-karṇa | śrudhi | havam | nū | cit | dadhiṣva | me | giraḥ | indra | stomam | imam | mama | kṛṣva | yujaḥ | cit | antaram

देवता        इन्द्र:;       छन्द        अनुष्टुप् ;       स्वर        गान्धारः ;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(आश्रुत्कर्ण) हे निरन्तर श्रवणशक्तिरूप कर्णवाले, (इन्द्र) सर्वान्तर्यामि परमेश्वर! (चित्) जैसे प्रीति बढ़ानेवाले मित्र अपनी, (युजः) सत्य विद्या और उत्तम-2 गुणों मे युक्त होनेवाले मित्र की, (गिरः) वाणियों को प्रीति के साथ सुनता है वैसे ही आप, (नु) शीघ्र ही, (मे) मेरी, (गिरः) स्तुति तथा, (हवं) ग्रहण करने योग्य सत्य वचनों को, (श्रुधि) सुनिये तथा, (मम) अर्थात् मेरी, (स्तोमं) स्तुतियों के समूह को, (अन्तरं) अपने ज्ञान के बीच, (दधिष्व) धारण करके, (युजः) अर्थात् पूर्वोक्त कामों में उक्त प्रकार से युक्त हुए हमलोगों को, (अन्तरं) भीतर की शुद्धि को, (कृष्व) कीजिये॥9॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में उपमालंकार है। मनुष्यों को उचित है कि जो सर्वज्ञ जीवों के किये हुये वाणी के व्यवहारों का यथावत् श्रवण करनेहारा सर्वाधार अन्तर्यामि जीव और अन्तःकरण का यथावत् शुद्धि हेतु तथा सबका मित्र ईश्वर है, वही एक जानने वा प्रार्थना करने योग्य है॥9॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
9. इन्द्र ! तुम्हारे कान चारों तरफ़ सुन सकते हैं; इसलिए हमारा आह्वान शीघ्र सुनो। हमारी स्तुति धारण करो। हमारा यह स्तोत्र और हमारे मित्र का स्तोत्र अपने पास रखो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
9. Hear, thou whose ear is quick, my call; take to thee readily my songs O Indra, let this laud of mine come nearer even than thy friend. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Hear, you whose ear is quick, my call; take to you readily my songs Indra, let this laud of mine come nearer even than your friend. [9]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
9. Oh! your whose ears hear all things, listen quickly to my invocation; hold in your heart my praises; keep near to you this my. hymn, as it were (the words of) a friend.

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