ऋग्वेदः 1.10.8

नहि त्वा रोदसी उभे ऋघायमाणमिन्वतः। जेषः स्वर्वतीरपः सं गा अस्मभ्यं धूनुहि॥8॥

पदपाठ — देवनागरी
न॒हि। त्वा॒। रोद॑सी॒ इति॑। उ॒भे इति॑। ऋ॒घा॒यमा॑णम्। इन्व॑तः। जेषः॑। स्वः॑ऽवतीः। अ॒पः। सम्। गाः। अ॒स्मभ्य॑म्। धू॒नु॒हि॒॥ 1.10.8

PADAPAATH — ROMAN
nahi | tvā | rodasī iti | ubhe iti | ṛghāyamāṇam | invataḥ | jeṣaḥ | svaḥ-vatīḥ | apaḥ | sam | gāḥ | asmabhyam | dhūnuhi

देवता        इन्द्र:;       छन्द        निचृदनुष्टुप्;       स्वर        गान्धारः ;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे परमेश्वर! ये (उभे) दोनों, (रोदसी) सूर्य्य और पृथिवी जिस, (ॠघायमाणम्) पूजा करने योग्य आपको, (नहि) नहीं, (इन्वतः)व्याप्त हो सकते सो आप हमलोगों के लिये, (स्वर्वतीः) जिनसे हमको अत्यन्त सुख मिले ऐसे, (अपः) कर्मों को, (जेषः) विजयपूर्वक प्राप्त करने के लिये हमारे, (गाः) इन्द्रियों को, (संधूनुहि) अच्छी प्रकार पूर्वोक्त कार्य्यों में संयुक्त कीजिये॥8॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जब कोई पूछे कि ईश्वर कितना बड़ा है, तो उत्तर यह है कि जिसको सब आकाश आदि बड़े-2 पदार्थ भी घेरे में नहीं ला सकते, क्योंकि वह अनन्त है।इससे सब मनुष्यों को उचित है कि उसी परमात्मा का सेवन उत्तम-2 कर्म करने और श्रेष्ठ पदार्थों की प्राप्ति के लिये उसी की प्रार्थना करते रहें। जब जिसके गुण और कर्मों की गणना कोई नहीं कर सकता, तो कोई उसके अन्त पाने को समर्थ कैसे हो सकता है॥8॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
8. इन्द्रदेव! शत्रु-वध के समय में स्वर्ग और मर्त्य दोनों ही तुम्हारी महिमा को धारण नहीं कर सकते। स्वर्गीय जल-वृष्टि करो और हमें गौ दो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
8. The heaven and earth contain thee not, together, in thy wrathful mood. Win us the waters of the sky, and send us kine abundantly. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
The heaven and earth contain you not, together, in your wrathful mood. Win us the waters of the sky, and send us kine abundantly. [8]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
8. Heaven and earth are unable to sustain you when destroying your enemies; you may command the waters of heaven: send us liberally kine.

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