ऋग्वेदः 1.1.8
राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम् । वर्धमानं स्वे दमे ॥8॥
पदपाठ — देवनागरी
राज॑न्तम् । अ॒ध्व॒राणा॑म् । गो॒पाम् । ऋ॒तस्य॑ । दीदि॑विम् । वर्ध॑मानम् । स्वे । दमे॑ ॥ 1.1.8
PADAPAATH — ROMAN
rājantam | adhvarāṇām | gopām | ṛtasya | dīdivim | vardhamānam | sve | dame
देवता — अग्निः ; छन्द — यवमध्याविराड्गायत्री ; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(स्वे) अपने (दमे) उस परमानन्द पद में कि जिसमें बड़े-2 दुःखों से छूटकर मोक्ष सुख को प्राप्त हुए पुरुष रमण करते हैं। (वर्धमानम्) सबसे बड़ा (राजन्तम्) प्रकाश स्वरूप (अध्वराणाम्) पूर्वोक्त यज्ञादिक अच्छे-अच्छे कर्म और धार्मिक मनुष्य तथा (गोपाम्) पृथिव्यादिकों की रक्षा (ॠतस्य) सत्यविद्या युक्त चारों वेदों और कार्य्य जगत् के अनादि कारण के (दीदिविम्) प्रकाश करनेवाले परमेश्वर को हम लोग उपासना-योग से प्राप्त होते हैं ॥8॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जैसे विनाश और अज्ञान आदि दोषरहित परमात्मा अपने अन्तर्यामि रूप से सब जीवों को सत्य का उपदेश तथा श्रेष्ठ विद्वान् और सब जगत की रक्षा करता हुआ अपनी सत्ता और परमानन्द में प्रवृत्त हो रहा है, वैसे ही परमेश्वर के उपासक भी आनन्दित, वृद्धियुक्त होकर विज्ञान में विहार करते हुये परम आनन्द रूप विशेष फलों को प्राप्त होते हैं ॥8॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
8. हे अग्नि! तुम प्रकाशमान, यज्ञ-रक्षक, कर्मफल के द्योतक और यज्ञशाला में वर्द्धनशाली हो।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
8. Ruler of sacrifices, guard of Law eternal, radiant One, Increasing in thine own abode.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Ruler of sacrifices, guard of eternal law, radiant one, Increasing in your own abode. [8]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
8. You, the radiant, the protector of sacrifices, the constant illuminator of truth, increasing in your own dwelling. Sve dame. sua damo, the chamber in which fire-worship is performed, and in which the fire increases by the oblations poured upon it. Damah1, for a home or house is peculiar to the Vedas.